प्राचीन मंदिर की स्थापना का ऐतिहासिक दावा
मंदिर के महंत परिवार के राजकुमार शर्मा ने बताया कि जयपुर की बसावट के दौरान 1734 में इस मंदिर की स्थापना की गई थी। जयपुर के संस्थापक सवाई जयसिंह द्वितीय के समय स्थापित यह मंदिर जांगिड़ समाज के प्रधान मंदिर के रूप में प्रतिष्ठित है। जांगिड़ समाज की मान्यता के अनुसार, पुराने घाट के पास भगवान विश्वकर्मा का मंदिर होना आवश्यक था, और उनके सहयोग से इस मंदिर का निर्माण हुआ था।
मंदिर की आपदा और पुनर्निर्माण
वर्ष 1981 में आई बाढ़ के दौरान पुराना मंदिर ध्वस्त हो गया था, लेकिन मंदिर की प्रतिमाएं सुरक्षित रहीं। इन प्रतिमाओं को ऊंचे स्थान पर रखकर नए मंदिर का निर्माण किया गया है, और विकास कार्य आज भी जारी है। जल्द ही यहां एक शिखर का निर्माण भी किया जाएगा।
मंदिर में विशेष प्रतिमाएं
मंदिर में भगवान विश्वकर्मा के साथ बाएं हाथ पर भगवान गणेश और दाहिने हाथ पर भगवान लक्ष्मी नारायण की प्रतिमाएं विराजमान हैं। यहां एक प्राचीन भगवान नरसिंह की प्रतिमा भी है, जिसकी उम्र लगभग 800 साल है। इस मंदिर की खासियत यह है कि सभी प्रमुख भगवानों के दर्शन एक ही स्थान पर किए जा सकते हैं।
विश्वकर्मा पूजन का विशेष आयोजन
ममता शर्मा और पवन कुमार के अनुसार, भगवान विश्वकर्मा का पूजन 17 सितंबर को मनाया जाएगा, जबकि फरवरी में विश्वकर्मा जयंती बड़े धूमधाम से मनाई जाती है। इस दिन कलश यात्रा और शोभायात्रा का आयोजन होता है, और जयपुर का जांगिड़ समाज यहां एकत्र होकर विशेष पूजा और आराधना करता है। हस्तकला से जुड़े कारीगर, मिस्त्री और औद्योगिक घराने भी इस अवसर पर भगवान विश्वकर्मा की पूजा करते हैं।
पूजन की तिथि और महत्व
वैदिक पंचांग के अनुसार, विश्वकर्मा पूजा कन्या संक्रांति पर की जाती है। इस वर्ष 16 सितंबर को भगवान सूर्य देव कन्या राशि में प्रवेश करेंगे, लेकिन भगवान विश्वकर्मा की पूजा 17 सितंबर को की जाएगी। इस दिन प्राचीन विश्वकर्मा मंदिर में भी श्रद्धालु पहुंचकर भगवान की पूजा अर्चना करेंगे।
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