व्रत विधि
पंडित शास्त्री के अनुसार, व्रत की पूजा दोपहर में की जाती है। व्रती को स्नान के बाद कलश स्थापित कर अष्टदल कमल के समान बर्तन में कुश से निर्मित अनंत की स्थापना करनी चाहिए। इसके निकट कुमकुम और केसर से रंजित चौदह गांठों वाला 'अनंत' रखा जाता है, जिसका आह्वान करने के बाद इसे दाहिनी भुजा पर बांधना चाहिए। यह अनंत सूत्र भगवान विष्णु को प्रसन्न करता है और अनंत फलदायक माना जाता है।
पूजा अर्चना की प्रक्रिया
इस दिन बिना नमक वाले भोजन का सेवन किया जाता है। पूजन के बाद घी का संक्षिप्त हवन भी किया जाता है। इसके बाद अनंत सूत्र को विशेष मंत्रों के साथ धारण किया जाता है। मंत्रोच्चारण इस प्रकार है:
"अनन्त संसारमहासमुद्रे मग्नं समभ्युद्धर वासुदेव
अनन्तरूपे विनियोजयस्व ह्यनन्तसूत्राय नमो नमस्ते"
पौराणिक कथा
महाभारत के समय महाराज युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण के कहने पर अनंत चतुर्दशी का व्रत रखा, जिससे उनका राज्य वापस मिल गया। यह व्रत संकटों का नाश करने और मनवांछित फल प्राप्त करने के लिए अत्यंत लाभकारी माना जाता है।
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