जयपुर। सौंखिया परिवार की ओर से चौड़ा रास्ता स्थित सौखिया भवन में चल रहे श्रीमद भागवत सप्ताह ज्ञानयज्ञ में शनिवार व्यास पीठ से आशीष शास्त्री ने कहा कि इस संसार में प्रेम ही ईश्वर है। जिस व्यक्ति के अंदर प्रेम की भावना निरंतर पल रही है। वो व्यक्ति किसी मंदिर में ईश्वर की पूजा करने वाले पुजारी से कम नहीं है। हम सभी को ईश्वर की भक्ति दृढ़तापूर्वक करनी चाहिए, जैसी भक्ति गोपियों ने भगवान श्रीकृष्ण के प्रति की थी। बृज का जों रस है,वह सभी रसों से फीका है। प्रेम ही मानव मात्र के लिए एक महत्वपूर्ण तत्व है, जिसके अभाव में किसी का सुखी हो पाना संभव नहीं है। प्रेम बदला नहीं चाहता उसमें सदैव समर्पण की भावना होनी चाहिए, प्रेम में तो समर्पण ही समर्पण होता है। बृजवासियों के प्रेम की भी पराकाष्ठा है कि विषषकर गोपियों में भगवान श्रीकृष्ण को श्रेष्ठ माना गया है। कामनाएं जीव का लक्षण है ना ही ईश्वर का । जीवन में भक्ति निश्वार्थ पूर्वक करनी चाहिए ,जैसी भक्ति गोपियों ने भगवान श्रीकृष्ण के प्रति की थी । गोपियों के प्रेम के आगे उद्यव जी अपना गुमान भूल गए औ काफी दिनों तक बृज में रहे। विधाता से मांगा कि उन्हें दूसरा जन्म बृज के ही किसी लता पत्रादि के रूप में मिले ताकि बृज गोपियों के चरणों की धूल का अभिषेक कर सके। हम सभी को ईश्वर की भक्ति दृढ़तापूर्वक करनी चाहिए, जैसी भक्ति गोपियों ने भगवान श्रीकृष्ण के प्रति की थी। कंसोद्धार,रूकमणि विवाह,सुदामा चरित्र की कथा पर प्रवचन किया। आयोजक रामदास सौंखिया ने बताया कि रविवार को कथा प्रसंग के तहत दोपहर 1 बजे से साम 6 बजे तक सुदामा चरित्र के साथ शुकदेव पूजन के प्रसंग के साथ कथा की पूर्णाहुति होगी।
जयपुर। सौंखिया परिवार की ओर से चौड़ा रास्ता स्थित सौखिया भवन में चल रहे श्रीमद भागवत सप्ताह ज्ञानयज्ञ में शनिवार व्यास पीठ से आशीष शास्त्री ने कहा कि इस संसार में प्रेम ही ईश्वर है। जिस व्यक्ति के अंदर प्रेम की भावना निरंतर पल रही है। वो व्यक्ति किसी मंदिर में ईश्वर की पूजा करने वाले पुजारी से कम नहीं है। हम सभी को ईश्वर की भक्ति दृढ़तापूर्वक करनी चाहिए, जैसी भक्ति गोपियों ने भगवान श्रीकृष्ण के प्रति की थी। बृज का जों रस है,वह सभी रसों से फीका है। प्रेम ही मानव मात्र के लिए एक महत्वपूर्ण तत्व है, जिसके अभाव में किसी का सुखी हो पाना संभव नहीं है। प्रेम बदला नहीं चाहता उसमें सदैव समर्पण की भावना होनी चाहिए, प्रेम में तो समर्पण ही समर्पण होता है। बृजवासियों के प्रेम की भी पराकाष्ठा है कि विषषकर गोपियों में भगवान श्रीकृष्ण को श्रेष्ठ माना गया है। कामनाएं जीव का लक्षण है ना ही ईश्वर का । जीवन में भक्ति निश्वार्थ पूर्वक करनी चाहिए ,जैसी भक्ति गोपियों ने भगवान श्रीकृष्ण के प्रति की थी । गोपियों के प्रेम के आगे उद्यव जी अपना गुमान भूल गए औ काफी दिनों तक बृज में रहे। विधाता से मांगा कि उन्हें दूसरा जन्म बृज के ही किसी लता पत्रादि के रूप में मिले ताकि बृज गोपियों के चरणों की धूल का अभिषेक कर सके। हम सभी को ईश्वर की भक्ति दृढ़तापूर्वक करनी चाहिए, जैसी भक्ति गोपियों ने भगवान श्रीकृष्ण के प्रति की थी। कंसोद्धार,रूकमणि विवाह,सुदामा चरित्र की कथा पर प्रवचन किया। आयोजक रामदास सौंखिया ने बताया कि रविवार को कथा प्रसंग के तहत दोपहर 1 बजे से साम 6 बजे तक सुदामा चरित्र के साथ शुकदेव पूजन के प्रसंग के साथ कथा की पूर्णाहुति होगी।
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