40 आसनों पर किया 101 साधकों ने यथार्थ गीता का पाठ
जयपुर। यथार्थ गीता पाठ मंडली की ओर से श्री परम हंस आश्रम कुण्डवाले हनुमानजी खोह नागोरियान में दो दिवसीय अखंड यथार्थ गीता पाठ का शुक्रवार को समापन हुआ। 40 आसन से 101 साधकों ने अर्थ सहित सामूहिक यथार्थ गीता के अखंड पाठ किए। खोह गंग की पहाडिय़ां में रात भर गीता के श्लोक गूंजते रहे। आश्रम के स्वामी गिरिजानंद महाराज के सान्निध्य में सर्व समाज के लोग एक साथ आसनों पर बैठ, गीता के पाठ कर सामाजिक समरसता का परिचय दिया। स्वामी गिरिजानंद ने बताया कि इस अवसर पर आश्रम में दो दिवसीय चतुर्थ त्रिशूल धुना स्थापना वार्षिकोत्सव मनाया गया। आश्रम को भगवा पताकाओं एवं झालरों से सजाया गया। हनुमानजी, भोलेनाथ की मनोहरी झांकी सजाई गई। राजस्थान में पहली बार इस तरह का अनूठा आयोजन किया गया है। जिसमें 101 साधक आसनों पर बैठ कर 24 घंटें भावार्थ सहित गीता का पाठ किया। इस मौके पर स्वामी गिरिजानंद ने कहा कि गीता भगवान के सुमिरन का माध्यम है। इसको समझने के लिए लोगों ने बहुत प्रयास किया लेकिन इसके वास्तविक मर्म को समझ नहीं पाए। इसलिए गीता का उपदेश जन जन तक पहुंचाने के लिए स्वामी अडग़ड़ानंद महाराज ने हिन्दी में रचना की। सत्संग प्रवचन के बाद पोष बड़ा प्रसादी का आयोजन किया गया। इसमें सैकड़ों श्रद्धालुओं ने पंगत में बैठ कर प्रसादी ग्रहण की।
जयपुर। यथार्थ गीता पाठ मंडली की ओर से श्री परम हंस आश्रम कुण्डवाले हनुमानजी खोह नागोरियान में दो दिवसीय अखंड यथार्थ गीता पाठ का शुक्रवार को समापन हुआ। 40 आसन से 101 साधकों ने अर्थ सहित सामूहिक यथार्थ गीता के अखंड पाठ किए। खोह गंग की पहाडिय़ां में रात भर गीता के श्लोक गूंजते रहे। आश्रम के स्वामी गिरिजानंद महाराज के सान्निध्य में सर्व समाज के लोग एक साथ आसनों पर बैठ, गीता के पाठ कर सामाजिक समरसता का परिचय दिया। स्वामी गिरिजानंद ने बताया कि इस अवसर पर आश्रम में दो दिवसीय चतुर्थ त्रिशूल धुना स्थापना वार्षिकोत्सव मनाया गया। आश्रम को भगवा पताकाओं एवं झालरों से सजाया गया। हनुमानजी, भोलेनाथ की मनोहरी झांकी सजाई गई। राजस्थान में पहली बार इस तरह का अनूठा आयोजन किया गया है। जिसमें 101 साधक आसनों पर बैठ कर 24 घंटें भावार्थ सहित गीता का पाठ किया। इस मौके पर स्वामी गिरिजानंद ने कहा कि गीता भगवान के सुमिरन का माध्यम है। इसको समझने के लिए लोगों ने बहुत प्रयास किया लेकिन इसके वास्तविक मर्म को समझ नहीं पाए। इसलिए गीता का उपदेश जन जन तक पहुंचाने के लिए स्वामी अडग़ड़ानंद महाराज ने हिन्दी में रचना की। सत्संग प्रवचन के बाद पोष बड़ा प्रसादी का आयोजन किया गया। इसमें सैकड़ों श्रद्धालुओं ने पंगत में बैठ कर प्रसादी ग्रहण की।
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