नई दिल्ली। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर से दिल्ली स्थित दिव्य धाम आश्रम में मासिक सत्संग कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस अवसर पर आशुतोष महाराज के शिष्य एवं शिष्यों ने ओजस्वी प्रवचनों एवं सुमधुर भजनों की श्रंखला को आए हुए श्रद्धालुओं के समक्ष रखा। स्वामी नरेंद्रानंद ने साई बुल्लेशाह के संघर्ष पूर्ण जीवन का बड़ा ही मार्मिकता से व्याख्यान किया। साई बुल्लेशाहके जीवन की घटनाएं बताती हैं , कि भक्ति मार्ग पर कोई सूरमा ही चल सकता है। बुल्लेशाह ने ईश्वर की खोज में धार्मिक ग्रंथों का पठन पाठन किया, कई विद्याओं को भी हासिल किया पर कही से भी उसे संतुष्टि प्राप्त नहीं हुई, उसके भीतर परमात्मा को देखने की प्यास नहीं बुझी।
जब साई इनायत शाह का उसके जीवन में पदार्पण हुआ जिन्होंने उसे परमात्मा का दर्शन करा, भक्ति मार्ग दिखलाया। एक दिन इसी भक्ति मार्ग पर चलते हुए बुल्लेशाह के जीवन में ऐसा मोड़ आया जब बुल्ले की एक गलती से उसके गुरु शाह इनायत उससे रूठ गए। परन्तु इतिहास साक्षी है कि यह संघर्ष भी उसको विचलित नहीं कर पाया। शाह इनायत से उसे अपने दर्शनों ने वंचित कर दिया, गुरु दरबार से उसे निकाल दिया गया, आश्रम में रहने वाले सभी गुरु भाई भी उसके लिए कठोर हो गए। कहते की ऐसी अंधकार भरी रातो ने बुल्लेशाह को अमर प्रेम प्रदान किया, आग की भट्टी में बुल्ला इतना तपा कि वह कुंदन बन बाहर निकला, उसने अपने गुरु को प्रसन्न करने के लिए नृत्य सीखा और फिर वह दिन आ गया जिस दिन बुल्ले ने अपने गुरु के आगे नाच नाच कर उन्हें मनाना था। बुल्ला अध्यात्मिक उत्सव में इतना नाचा इतना नाचा कि वहां आए हुए श्रद्धालु भी दंग रह गए। बुल्लेशाह की दृढ़ता, प्रेम एवं समर्पण को देख शाह इनायत ने बुल्ले के प्रेम को अमर कर दिया। बुल्लेशाह प्रेम की पराकाष्टा पे खरा उतरा। बुल्लेशाह ने इस काफिय़ा का भी गायन किया ,पिया पिया करते हमीं पिया होए, अब पिया किस नूं कहीए।
यदि बुल्लेशाह इस संघर्ष में विजयी बन पाए तो मात्र ब्रह्मज्ञान के सहारे। ऐसे ही शिष्य समाज की नौका की पतवार संभालने वाले कर्णधर बन सकते हैं, देश का सशक्त निर्माण कर सकते हैं। हमारे समाज को ईमानदार मानवों की आवश्यकता है और ऐसे मानव का गठन एक पूर्ण संत की कृपा हस्त तले ही हो सकता है। लेकिन यह तभी संभव है जब जीवन में गुरु का पर्दापण होता है। परमात्मा के प्रकाश रूप को देख लेने के पश्चात् ही प्रेम पैदा होता है और भक्ति का प्रारम्भ होता है। भक्ति प्रगाढ़ होने पर आत्मा परमात्मा से एकाकार हो जाती है। पूर्णतया उसके रंग में रंग जाती है । आदर्श समाज की स्थापना हेतु प्रत्येक इकाई, प्रत्येक इंसान का पका होना अर्थात् पूर्ण रूप से विकसित होना अति आवश्यक है। व्यक्ति निर्माण ही समाज निर्माण और फिर समाज निर्माण ही विश्व हित का मुख्य हेतु है। भारतवर्ष युगों के समाज निर्माण विषयक प्रश्नों का समाधन सम्पूर्ण विश्व को देता आ रहा है और देता रहेगा। यह समाधान है अध्यात्म जो भारतीय संस्कृति का आधार है क्योंकि सम्पूर्ण विश्व में सर्वप्रथम और सर्वश्रेष्ठ भारतीय संस्कृति ही है। अध्यात्म ही सम्पूर्ण विकास की प्रक्रिया है। यही समस्त वेदों का सार है।
जब साई इनायत शाह का उसके जीवन में पदार्पण हुआ जिन्होंने उसे परमात्मा का दर्शन करा, भक्ति मार्ग दिखलाया। एक दिन इसी भक्ति मार्ग पर चलते हुए बुल्लेशाह के जीवन में ऐसा मोड़ आया जब बुल्ले की एक गलती से उसके गुरु शाह इनायत उससे रूठ गए। परन्तु इतिहास साक्षी है कि यह संघर्ष भी उसको विचलित नहीं कर पाया। शाह इनायत से उसे अपने दर्शनों ने वंचित कर दिया, गुरु दरबार से उसे निकाल दिया गया, आश्रम में रहने वाले सभी गुरु भाई भी उसके लिए कठोर हो गए। कहते की ऐसी अंधकार भरी रातो ने बुल्लेशाह को अमर प्रेम प्रदान किया, आग की भट्टी में बुल्ला इतना तपा कि वह कुंदन बन बाहर निकला, उसने अपने गुरु को प्रसन्न करने के लिए नृत्य सीखा और फिर वह दिन आ गया जिस दिन बुल्ले ने अपने गुरु के आगे नाच नाच कर उन्हें मनाना था। बुल्ला अध्यात्मिक उत्सव में इतना नाचा इतना नाचा कि वहां आए हुए श्रद्धालु भी दंग रह गए। बुल्लेशाह की दृढ़ता, प्रेम एवं समर्पण को देख शाह इनायत ने बुल्ले के प्रेम को अमर कर दिया। बुल्लेशाह प्रेम की पराकाष्टा पे खरा उतरा। बुल्लेशाह ने इस काफिय़ा का भी गायन किया ,पिया पिया करते हमीं पिया होए, अब पिया किस नूं कहीए।
यदि बुल्लेशाह इस संघर्ष में विजयी बन पाए तो मात्र ब्रह्मज्ञान के सहारे। ऐसे ही शिष्य समाज की नौका की पतवार संभालने वाले कर्णधर बन सकते हैं, देश का सशक्त निर्माण कर सकते हैं। हमारे समाज को ईमानदार मानवों की आवश्यकता है और ऐसे मानव का गठन एक पूर्ण संत की कृपा हस्त तले ही हो सकता है। लेकिन यह तभी संभव है जब जीवन में गुरु का पर्दापण होता है। परमात्मा के प्रकाश रूप को देख लेने के पश्चात् ही प्रेम पैदा होता है और भक्ति का प्रारम्भ होता है। भक्ति प्रगाढ़ होने पर आत्मा परमात्मा से एकाकार हो जाती है। पूर्णतया उसके रंग में रंग जाती है । आदर्श समाज की स्थापना हेतु प्रत्येक इकाई, प्रत्येक इंसान का पका होना अर्थात् पूर्ण रूप से विकसित होना अति आवश्यक है। व्यक्ति निर्माण ही समाज निर्माण और फिर समाज निर्माण ही विश्व हित का मुख्य हेतु है। भारतवर्ष युगों के समाज निर्माण विषयक प्रश्नों का समाधन सम्पूर्ण विश्व को देता आ रहा है और देता रहेगा। यह समाधान है अध्यात्म जो भारतीय संस्कृति का आधार है क्योंकि सम्पूर्ण विश्व में सर्वप्रथम और सर्वश्रेष्ठ भारतीय संस्कृति ही है। अध्यात्म ही सम्पूर्ण विकास की प्रक्रिया है। यही समस्त वेदों का सार है।
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