जयपुर। जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन ऑफ राजस्थान (जार) ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से कोरोना महामारी में संकट से घिरे मीडिया जगत और मीडियाकर्मियों को आर्थिक राहत पैकेज दिए जाने की मांग की है।
इस संबंध में जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन ऑफ राजस्थान (जार) के प्रदेश अध्यक्ष राकेश कुमार शर्मा और प्रदेश महामंत्री संजय सैनी ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, सूचना एवं जनसंपर्क मंत्री डॉ.रघु शर्मा को पत्र लिखा है। पत्र में बताया कि देश के साथ राजस्थान में भी कोरोना महामारी के प्रकोप का विपरीत असर सभी क्षेत्रों में पड़ा है। मीडिया क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं है। कोरोना महामारी में मीडिया भी राजस्थान वासियों को जागरुक करने और सहयोग करने में अपनी महती भूमिका निभा रहा है। मीडियाकर्मियों के सामने कोरोना संकटकाल में कई मध्यम, लघु समाचार पत्रों के बंद होने या छंटनी होने से जीवनयापन का संकट गहरा गया है। स्थानीय टीवी चैनल भी संकट से जूझ रहे हैं। बड़े समाचार पत्र, नेशनल चैनल भी संकट के दौर में है। बड़े और मध्यम समाचार पत्रों, टीवी चैनल में मीडियाकर्मियों व अन्य स्टाफ को वेतन कटौती हो रही है।
कुछ समाचार पत्रों में तो पत्रकारों को वेतन नहीं मिला है। काफी पत्रकारों की छंटनी भी हो चुकी है, साथ ही जिलों, तहसीलों के ब्यूरो ऑफिस बंद कर दिए गए हैं। ऐसे में वेतन से वंचित और नौकरी से हटाए गए पत्रकारों के सामने मकान का किराया देने, बच्चों की स्कूल फीस देने, परिवार के लिए राशन की व्यवस्था करना भी बहुत कठिन हो गया है। जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन ऑफ राजस्थान (जार) अपने पत्रकार साथियों के सहयोग से इस संकट की घड़ी में प्रभावित पत्रकारों की मदद कर रहा है। सीमित आर्थिक संसाधनों के कारण पत्रकार संगठन अपने पत्रकार सार्थियों की लम्बे समय तक सहायता नहीं कर सकता है। ऐसे संकट में राज्य सरकार ही मीडिया जगत और मीडियाकर्मियों को राहत पैकेज देकर इस क्षेत्र को बचा सकता है। प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकारों के लिए सरकार ने उदारता दिखाते हुए पांच हजार रुपए की मासिक सम्मान राशि देना शुरु किया है, वैसे ही राजस्थान में आर्थिक संकट से जूझ रहे पत्रकारों, समाचार पत्रों व टीवी चैनलों के लिए आर्थिक राहत पैकेज की घोषणा की जाए। पत्रकार कल्याण कोष से प्रभावित पत्रकारों के लिए आर्थिक पैकेज देकर राहत दी जा सकती है।
राजस्थान के मीडियाकर्मियों का पचास लाख रुपए का बीमा करवाए। साथ ही आपके आदेश (नौकरी से नहीं निकालने और वेतन कटौती नहीं करने) की अवहेलना करने वाले उन समाचार पत्रों और टीवी चैनल को पाबंद किया जाए, जो इस संकट में राहत देने के बजाय पत्रकारों और गैर पत्रकारों को नौकरी से निकाल रहे हैं और उनकी वेतन में पचास फीसदी तक कटौती करके दे रहे हैं।
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