हाथी पर बैठकर लाल रंग के वस्त्र पहनकर दूध का भक्षण करते हुए प्रौढ़ावस्था में आई मिथुन संक्रान्ति

14 जून  से 16 जुलाई  तक बनेगा त्रिग्रही योग एवं बुध आदित्य योग, 14 जून को मध्यरात्रि में सूर्यदेव मिथुन राशि में प्रवेश करेंगे जहाँ पर बुध व राहु पहले से ही विराजमान है।


जयपुर। भगवान सूर्य ने  मिथुन राशि में प्रवेश किया। पशु जाति, वाहन हाथी, उपवाहन गधा, गोरोचन का लेप, लाल रंग के वस्त्र, बिल्व पुष्प की माला, धनुष हाथ में लेकर लोहे के पात्र में दूध का भक्षण करती हुई हाथी पर बैठकर अपनी प्रौढ़ावस्था में रात्रि के द्वितीय प्रहर में प्रवेश किया।

 वैदिक शोध एवं प्रशिक्षण संस्थान के मुख्य सरंक्षक डॉ महेंद्र मिश्रा ने बताया कि इस संक्रान्ति का पुण्यकाल दोपहर 12ः39 से सायं 07ः17 तक रहा। यह शराब व मांस का व्यापार करने वालों के लिए हानिकारक होगी, समाज के उच्च आयवर्ग वालों के लिए राहत आयेगी। चोर, तस्कर आदि के लिए अशुभ होगा, लाल-सफेद-काले रंग की वस्तुओं के भाव बढ़ेंगे। हाथी, गधा, अस्त्र, शस्त्र से आजीविका चलाने वाले लोगों का कष्ट होगा। धान्य के भाव बढ़ेंगे।
मिथुन संक्रांति के दिन सिलबट्टे की पूजा की जाती है। यह पर्व चार दिन का होता है एवं संक्रांति के दिन पूजा करने से पहले दूध और पानी के साथ सिलबट्टे को स्नान करवाएं। इसके बाद सिलबट्टे पर चंदन, सिंदूर, फूल व हल्‍दी चढ़ाएं। फिर इस दिन अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि दें। इस दिन गुड़, नारियल, चावल के आटे व घी से बनी पोड़ा-पीठा मिठाई को भी बनाया जाता है। चावल का सेवन करना इस दिन वर्जित माना जाता है।
ऐसा माना जाता है कि महिलाओं को जैसे मासिक धर्म  होता है वैसे ही भूदेवी या धरती मां को शुरूआत के तीन दिनों तक मासिक धर्म हुआ था जिसको धरती के विकास का प्रतीक माना जाता है। तीन दिनों तक भूदेवी मासिक धर्म में रहती हैं वहीं चौथे दिन में भूदेवी जिसे सिलबट्टा भी कहते हैं उन्हें स्नान कराया जाता है। इस दिन धरती माता की पूजा की जाती है। उड़िसा  के जगन्नाथ मंदिर  में आज भी भगवान विष्णु  की के साथ भूदेवी की चांदी की प्रतिमा आज भी विराजमान है। साथ ही श्रीदेवी की भी पूजा होती है। इसी संक्रांति के बाद निरयण दक्षिणायन एवं वर्षा ऋतू का भी प्रारम्भ हो जाता है।

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