जयपुर। आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को योगिनी एकादशी भी कहा जाता है। साल के अन्य एकादशी के अपेक्षा योगिनी एकादशी का व्रत व पूजा अर्चना से
भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है।बुधवार को योगिनी एकादशी पर शहर के सभी मंदिरों में भगवान विष्णु की विशेष पूजा अर्चना की जाएगी। साल भर में चौबीस एकदाशी होती है। मल मास की एकादशियों को मिलाकर इनकी संख्या 26 हो जाती है। इन्हीं एकादशियों में एक एकादशी योगिनी एकादशी है। यह एकादशी मोक्षप्रदायी होती है। इस एकादशी में व्रत पूजन सहित भूमि पर शयन व दान का बहुत महत्व है। दिन में योगिनी एकादशी की कथा भी जरूर सुननी चाहिए। इस दिन दान कर्म करना भी बहुत कल्याणकारी रहता है। पीपल के पेड़ की पूजा भी इस दिन अवश्य करना चाहिए। रात्रि में जागरण भी करना चाहिए। पं राजकुमार चतुर्वेदी ने बताया इस दिन दुर्व्यसनों से भी दूर रहकर सात्विक जीवन जीना चाहिए। इस एकादशी के बाद 1 जुलाई को आगामी आने वाली एकादशी आषाढ़ शुक्ल पक्ष की देवशयनी एकादशी रहेगी। देवशयनी एकादशी के बाद विवाह, यज्ञोपवीत मुंडन आदि मांगलिक कार्यों पर विराम लग जाएगा।
योगिनी एकादशी व्रतकथा
योगिनी एकादशी का यह व्रत काफी प्रचलित है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार महाभारत काल में एक बार युधिष्ठिर भगवान श्रीकृष्ण से एकादशियों के व्रत का माहात्म्य सुन रहे थे। उन्होंने श्रीकृष्ण से कहा भगवन आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी का क्या महत्व है और इस एकादशी का नाम क्या है? भगवान श्रीकृष्ण ने कहा इस एकादशी का नाम योगिनी है। सभी जगत में जो भी इस एकादशी के दिन विधिवत उपवास रखता है प्रभु की पूजा करता है। उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। योगिनी एकादशी का यह उपवास तीनों लोकों में प्रसिद्ध है।
राशि के अनुरूप करें दान
मेष- गुड़ चना व मसूर की दाल। वृषभ- कपड़े वह श्रृंगार संबंधित सामग्री। मिथुन- पुस्तक, कॉपी लेखनी सामग्री।
कर्क - सफेद वस्त्र, दूध, घी। सिंह - गेहूं, मसूर दाल। कन्या -लेखनी सामग्री, कॉपी किताब।
तुला -विभिन्न प्रकार के फल। वृश्चिक -छाता, जूते-चप्पल। धनु - धार्मिक पुस्तक व पूजन संबंधी सामग्री।
मकर - उड़द, जूते-चप्पल व लोहा। कुंभ - लोहा, तेल, चना। मीन - वस्त्र व खाद्यान्न संबंधी सामग्री।
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