सूर्य के दक्षिणायन का है ऐसा महत्व, जानिए क्यों कहते हैं इसको देवताओं की रात्रि

जयपुर।सूर्य का नौ ग्रहों में महत्वपूर्ण स्थान है औऱ इसकी अवस्था में छोटे से परिवर्तन का मानव जीवन पर गहरा असर होता है। सूर्य ग्रहण और उसका साल में दो बार स्थिति में परिवर्तन दो बड़ी घट
नाएं होती है। इनका असर मानव जीवन पर देखा जाता है। हिंदु पंचांग में एक साल में दो अयन होते हैं। इसका मतलब यह होता है कि सूर्य एक वर्ष में अपनी स्थिति में दो बार परिवर्तन करता है। यह परिवर्तन उत्तरायण और दक्षिणायन कहलाता है। उत्तरायण में सूर्य मकर राशि से मिथुन राशि तक भ्रमण करता है, जबकि दक्षिणायन में सूर्य कर्क राशि से धनु राशि तक भ्रमण करता है। इस तरह से सूर्य के दोनों अयन 6-6 माह के होते हैं।

उत्तरायण

मकर संक्रांति के दिन सूर्य उत्तरायण होता है। इस दिन से दिन लंबे और रातें छोटी होनी शुरू हो जाती हैं। जब सूर्य उत्तरायण होता है तो उस समय से तीर्थ यात्रा और उत्सवों का प्रारंभ होता है. उत्तरायण पौष-माघ मास में होता है। सूर्य के उत्तरायण को देवताओं का दिन कहा जाता है, इसीलिए इस समय नए कार्य, गृह प्रवेश , यज्ञ, व्रत - अनुष्ठान, विवाह, मुंडन जैसे शुभ कार्य किए जाते हैं।

दक्षिणायन

दक्षिणायन का प्रारंभ वर्षाकाल में 21/22 जून से होता है। 21 जून को जब सूर्य उत्तरायण से दक्षिणायन होता है उस समय धार्मिक मान्यता के अनुसार यह देवताओं की रात्रि होती है। दक्षिणायन में रातें लंबी होना प्रारंभ हो जाती हैं और दिन छोटे होने लगते हैं। दक्षिणायन में सूर्य दक्षिण की ओर झुकाव के साथ अपनी गति करता है।

दक्षिणायन व्रत और उपवास के लिए सर्वश्रेष्ठ होता है। सूर्य के दक्षिणायन में विवाह, मुंडन, उपनयन आदि शुभ कार्यों का निषेध होता हैं लेकिन तामसिक कार्यों के लिए यह समय उपयुक्त माना जाता है। सूर्य का दक्षिणायन होना इच्छाओं, कामनाओं में बढ़ोतरी करता है। इस कारण इस

समय किए गए धार्मिक कर्मकांड जैसे व्रत, पूजा इत्यादि से रोग और शोक का नाश होता है।

दोनों अयन का महत्व

उत्तरायण में जप, तप और सिद्धियों के साथ विवाह समारोह, यज्ञोपवीत और गृहप्रवेश जैसे शुभ और मांगलिक प्रसंगों का प्रारंभ किया जाता है। उत्तरायण में आसमान स्वच्छ अर्थात बादलों से रहित होता है। वहीं दक्षिणायन में वर्षा, शरद और हेमंत, यह तीनों ऋतुएं होती हैं।

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