संक्रांति का योग 17 सितंबर को, पितर देवता के साथ ही सूर्यदेव की पूजा और दान-पुण्य करने का पर्व

जयपुर।  गुरुवार, 17 सितंबर को कई खास योग बन रहे हैं। इस दिन सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या, कन्या संक्रांति और विश्वकर्मा पूजा है। अमावस्या पर किसी पवित्र नदी में स्नान करने और दान-पुण्य करने की परंपरा है। इस बार कोरोना की वजह से किसी पवित्र नदी में स्नान नहीं कर सकते हैं तो घर पर ही नदियों और तीर्थों का ध्यान करते हुए स्नान करना चाहिए।


सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या - ये पितृ पक्ष की अंतिम तिथि है। इस अवसर पर पितर देवता के लिए धूप-ध्यान, पिंडदान, तर्पण, श्राद्ध कर्म करने की परंपरा है। दोपहर में गाय के गोबर से कंडा जलाएं और उस पर गुड़-घी डालकर धूप देना चाहिए।

कन्या संक्रांति - नौ ग्रहों का राजा सूर्य 17 सितंबर को सिंह राशि से कन्या राशि में प्रवेश करेगा। इस राशि परिवर्तन को कन्या संक्रांति कहा जाता है। इस दिन सुबह जल्दी उठना चाहिए। स्नान के बाद सूर्यदेव की विशेष पूजा करें। तांबे के लोटे से अर्घ्य अर्पित करें। ऊँ सूर्याय नम: मंत्र का जाप करें। सूर्य से संबंधित चीजें जैसे गुड़, तांबे के बर्तन का दान करें।

विश्वकर्मा पूजा- पौराणिक मान्यता के अनुसार विश्वकर्मा देवताओं के शिल्पी हैं। विश्वकर्मा ही देवताओं के लिए अस्त्र-शस्त्र, महल और मंदिर का नि


र्माण करते हैं। विश्वकर्मा ने सृष्टि की रचना में ब्रह्माजी की मदद भी की थी। ये दिन सभी शिल्पकार, व्यापारियों, कारीगर, मशीनरी से संबंधित काम करने वाले लोगों के लिए बहुत खास रहता है। इस दिन विश्वकर्माजी के साथ ही औजारों की भी पूजा की जाती है।

17 सितंबर को कर सकते हैं ये काम भी - अमावस्या पर शिवलिंग पर तांबे के लोटे से जल चढ़ाएं और ऊँ नम: शिवाय मंत्र का जाप करें। किसी तालाब में मछलियों को आटे की गोलियां बनाकर खिलाएं। गौशाला में धन और अनाज का दान करें। जरूरतमंद लोगों की मदद करें।

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