जयपुर। हिंदू पंचांग के 12 महीनों में हर महीने दो एकादशी आती है। यानी साल में 24 एकादशी पर व्रत-पूजा करने का विधान है, लेकिन इस साल एक अतिरिक्त महीना जुड़ गया है, जिसे पुरुषोत्तम मास कहा जाता है। यह पुरुषोत्तम मास क्वांर (आश्विन) महीना में आया है, जिसके चलते क्ववांर दो बार पड़ रहा है। इस महीने में पड़ने वाली दोनों एकादशी को मिलाकर एकादशियों की संख्या इस साल 26 हो रही है। पं अक्षय शास्त्री के अनुसार पुरुषोत्तम मास की पहली एकादशी 27 सितंबर को है, जिसे पद्मिनी एकादशी कहा जाता है। दूसरी एकादशी 13 अक्टूबर को, जिसे परम एकादशी के नाम से जाना जाता है। ये दोनों एकादशी हर तीसरे साल आने वाले पुरुषोत्तम मास में पड़ती हैं। इस दिन व्रत करने से कई यज्ञ करने के बराबर पुण्य की प्राप्ति होती है।
पद्मिनी एकादशी कथा
भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को पुरुषोत्तमी एकादशी का महत्व में बताया था। त्रेतायुग में राजा कृतवीर्य की संतान नहीं थी। रानियों के पूछने पर माता अनुसुइया ने पुरुषोत्तम मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी पर पूजा, व्रत की सलाह दी थी। भगवान विष्णु ने वरदान स्वरूप पुत्र जन्म का आशीर्वाद दिया।
परमा एकादशी
कथा अनुसार काम्पिल्य नगरी में सुमेधा नाम का धर्मात्मा ब्राह्मण था । पूर्व जन्म के पाप के कारण दरिद्र था । एक दिन सुमेधा ने पत्नी से बोला- मैं परदेस जाकर कुछ कमाता हूं। पत्नी ने कहा-आपको कहीं जाने की आवश्यकता नहीं है, जो भाग्य में होगा, वह यहीं मिल जाएगा । एक समय कौंडिन्य मुनि उस जगह आए। मुनि को भोजन कराया। मुनि ने अधिक मास की कृष्णपक्ष की 'परमा एकादशी' का व्रत करने को कहा। कौंडिन्य मुनि के कहे अनुसार उन्होंने 'परमा एकादशी' पर पांच दिन तक व्रत किया । राजकुमार ने ब्रह्माजी की प्रेरणा से उन्हें आजीविका के लिए एक गांव और एक उत्तम घर जो सब वस्तुओं से परिपूर्ण था, रहने के लिए दिया ।
Comments
Post a Comment