जयपुर। ़आराध्य देव गोविंद देव जी मंदिर में रास पूर्णिमा 19 नवंबर को मनाई जाएगी। शाम 7:15 से 7:30 बजे तक रास पूर्णिमा की विशेष झांकी के दर्शन होंगे। मंदिर के प्रवक्ता मानस गोस्वामी ने बताया कि अन्य सभी झांकियों का समय यथावत रहेगा। इस अवसर पर ठाकुर जी को सफेद पोशाक धारण कराकर सफेद अलंकार और पुष्पों से श्रृंगार किया जाएगा। ठाकुर श्रीजी को खीर और खीरसा का भोग अर्पण किया जाएगा। मंदिर के गर्भगृह में रास का खाट सजाया जाएगा, जिसमें चौसर और शतरंज की झांकी होगी। ठाकुर जी की सेवा में दूध, पान, इत्रदान अर्पित किए जाएंगे।
बिहार समाज मनाएगा सामा चकेवा पर्व: कार्तिक पूर्णिमा को बिहार समाज के लोग सामा चकेवा पर्व मनाएंगे। यह बहन-भाई के स्नेह से जुड़ा पर्व है। छठ पर्व से ही मिट्टी से मूर्तियां बनाने और लोकगीत के साथ इसकी शुरूआत हो चुकी है। मिथिला तथा कोसी के क्षेत्र में भाई दूज और रक्षाबंधन की तरह ही भाई बहन के प्रेम के प्रतीक लोक पर्व सामा चकेवा प्रचलित है। छठ के खरना के दिन से मिट्टी से सामा चकेवा सहित अन्य प्रतिमाएं बनाकर इसकी शुरुआत की जाती है। देव उठनी एकादशी की रात से महिलाएं घर के आंगन में भजन सहित अन्य गीत गाती है। कार्तिक पूर्णिमा की रात को मिट्टी के बने पेटार यानी बांस से बना डाला में दही-चूरा भर सभी बहनें सामा चकेबा को अपने-अपने भाई के घुटने के बल से फुड़वाकर कर श्रद्धापूर्वक अपने खोइछा में लेती है।
देव दिवाली 19 को मंदिरों में होंगे विशेष आयोजन
कार्तिक पूर्णिमा को देव दिवाली मनाई जाएगी। देवालयों में एक बार फिर आस्था के दीये जलेंगे। पूर्णिमा तिथि 18 और 19 नवंबर दोनों दिन रहने से देव दिवाली भी दो दिन मनेगी। ज्यादातर मंदिरों में 19 नवंबर को देव दिवाली के आयोजन होंगे। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन देवता काशी की पवित्र भूमि पर उतरते हैं और दिवाली मनाते हैं। इसलिए मुख्य रूप से देव दिवाली काशी में गंगा नदी के तट पर मनाई जाती है। इस दिन काशी नगरी में एक अलग ही उल्लास देखने को मिलता है। हर ओर साज-सज्जा की जाती है और गंगा घाट पर हर ओर मिट्टी के दीपक प्रज्वलित किए जाते हैं। उस समय गंगा घाट का दृश्य भाव विभोर कर देने वाला होता है। छोटीकाशी जयपुर में भी देव दिवाली धूमधाम से मनाई जाएगी।
महामंडलेश्वर पुरूषोत्तम भारती ने बताया कि एक बार त्रिपुरासुर राक्षस ने अपने आतंक से मनुष्यों सहित देवी-देवताओं और ऋषि-मुनियों सभी को त्रस्त कर दिया था। उसके त्रास के कारण हर कोई त्राहि त्राहि कर रहा था। तब सभी देव गणों ने भगवान शिव से उस राक्षस का अंत करने हेतु निवेदन किया। जिसके बाद भगवान शिव ने त्रिपुरासुर राक्षस का वध कर दिया। इसी खुशी में सभी इससे देवता अत्यंत प्रसन्न हुए और शिवजी का आभार व्यक्त करने के उनकी नगरी काशी में पधारे। देवताओं ने काशी में अनेकों दीए जलाकर खुशियां मनाई थीं। यह कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि थी। यही कारण है कि हर साल कार्तिक मास की पूर्णिमा पर आज भी काशी में दिवाली मनाई जाती है।ज्योतिषाचार्य अक्षय गाैतम ने बताया कि पूर्णिमा तिथि 18 नवंबर को दोपहर करीब 12 बजे से लग जाएगी जो 19 नवंबर शुक्रवार दोपहर करीब ढाई बजे तक रहेगी। उदियात तिथि के अनुसार 19 नवंबर को ही देव दिवाली मनाना श्रेष्ठ रहेगा।
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