जयपुर। देवउठनी एकादशी के साथ ही शादी-ब्याह पर से लगा बैन भी हट गया है। देवताओं के शयनकाल में चले जाने से शादी ब्याह जैसे मंगल कार्य बंद हो गए थे जो अब खुल गए हैं। पहले से ही इस दिन का शुभ मुहुर्त में शादी ब्याह तय कर चुके लोगों के घरों में इस दिन खूब शहनाईयां बजी। देव उठने के साथ ही शादी के माहौल में भी खुशिया दो गुनी कर दी। खुशी में चलाई आतिशबाजी ने दीपावली सा माहौल निर्मित कर दिया।
घर-घर में देवताओं की पूजा कर उन्हें शयनकाल से उठाने का काम किया गया। लंबे समय से शयनकाल में चले गए देवताओं के उठने के बाद उनके भोजन व्यवस्था का भी इंतजाम किया गया था। इसके लिए पूजा स्थल पर पूजा सामग्री के साथ गन्ने, मिठाईयां, सिंघाड़े, बेर, सब्जियां आदि रखी गई। गन्ना गणेशजी का प्रिय आहार है। इसलिए, पूजा स्थल पर गन्ना विशेष रूप से रखा गया। पूजा के लिए गन्नों की विक्री भी खूब हुई। गांव से आए लोगों ने जगह-जगह दुकानें लगाकर गन्ने बचे। इस दिन घर-घर में तुलसी व सालिगराम का विवाह कराया गया।
देवउठनी एकादशी पर जानें श्रीहरि विष्णु के सोने-जागने की रोचक कहानी
देवउठनी एकादशी या देवप्रबोधिनी एकादशी पर देवताओं के उठने के साथ ही मंगल कार्यों की शुरुआत हो जाती है। हम बताएंगे कि देवताओं के सोने और जागने के पीछे की कहानी-
पद्मपुराण में एक रोचक कहानी मिलती है। कहा जाता है कि श्रीहरि विष्णु के सोने और जागने की आदतों से परेशान होकर एक दिन देवी लक्ष्मी ने श्रीहरि से कहा, हे देव! कभी तो आप सालों साल दिन-रात जागते रहते हैं और कभी सालों तक सोते रहते हैं। आपसे अनुरोध है कि आप अपनी नींद को लेकर नियम बना लें। आप हर साल निद्रा लिया करें। माता लक्ष्मी की यह बात सुनकर नारायण मुस्कुराए और बोले- आप सही कह रही हैं देवी। मेरे इस अनियमित क्रम से देवताओं और आपको काफी कष्ट उठाना पड़ता है। इसलिए आपके कहे अनुसार मैं हर साल वर्षा ऋतु के चार महीने तक शयन किया करूंगा, ताकि आपको और देवगणों को कुछ अवकाश मिल सके। इस काल में जो भी भक्त संयम के साथ मेरी आराधना करेंगे, उनके घर में आपके साथ निवास करूंगा। यही कारण है कि देवशयनी से प्रारंभ होने वाला श्रीहरि का चातुर्मासीय योगनिद्रा काल कार्तिक शुक्ल एकादशी को पूर्ण हो जाता है। धरतीवासी जगत के पालनहार समेत समस्त देवी शक्तियों को 'उठो देव, बैठो देव, अंगुरिया चटकाओ देव' की मनुहार के साथ जगाते हैं।
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