चैत्र पूर्णिमा 16 अप्रैल को:हनुमान जी के साथ ही विष्णु जी, शनि की पूजा करने का और भगवान सत्यनारायण की कथा सुनने का शुभ योग
धर्म प्रवाह डेस्क। 16 अप्रेल को चैत्र मास की पूर्णिमा है। इस तिथि पर हनुमान जी का जन्मोत्सव मनाया जाता है। इस बार ये पर्व शनिवार को होने से इस दिन शनि देव के लिए विशेष पूजा करने का शुभ योग बन रहा है। पूर्णिमा पर विष्णु जी और महालक्ष्मी का अभिषेक करना चाहिए और भगवान सत्यनारायण की कथा सुननी चाहिए। पूर्णिमा पर किसी पवित्र नदी में स्नान करने की परंपरा है। नदी में स्नान के बाद जरूरतमंद लोगों धन का दान करें। किसी गौशाला में गायों को हरी घास खिलाएं।
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार चैत्र मास की पूर्णिमा पर ये महीना खत्म हो जाएगा। अगले दिन यानी 17 अप्रैल से वैशाख शुरू हो जाएगा। पूर्णिमा पर भगवान विष्णु, महालक्ष्मी, श्रीकृष्ण का केसर मिश्रित दूध से अभिषेक करना चाहिए। इसके लिए दक्षिणावर्ती शंख में दूध भरें और भगवान की प्रतिमा पर चढ़ाएं। इसके बाद स्वच्छ जल से अभिषेक करना चाहिए। भगवान नए वस्त्र, हार-फूल, इत्र आदि चीजें चढ़ाएं। इस दौरान ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जप करना चाहिए। भगवान को मिठाई का भोग तुलसी के साथ लगाएं। धूप-दीप जलाकर आरती करें।
हनुमान जन्मोत्सव पर करें उनके द्वादशनाम स्तोत्र का पाठ
आज हनुमान जी के जन्मोत्सव पर हनुमान जी 12 नाम वाले द्वादशनाम स्तोत्र का पाठ कर सकते हैं। इन नामों का पाठ करने से भक्त की समस्याएं खत्म हो सकती हैं।
ये है संपूर्ण हनुमान द्वादशनाम स्तोत्र
ऊँ हनुमान् अंजनी सूनुर्वायुर्पुत्रो महाबलः, श्रीरामेष्टः फाल्गुनसंखः पिंगाक्षोऽमित विक्रमः।
उदधिक्रमणश्चैव सीताशोकविनाशनः, लक्ष्मणप्राणदाता च दशग्रीवस्य दर्पहा।।
एवं द्वादश नामानि कपीन्द्रस्य महात्मन:। स्वाल्पकाले प्रबोधे च यात्राकाले य: पठेत्।।
तस्य सर्वभयं नास्ति रणे च विजयी भवेत्। राजद्वारे गह्वरे च भयं नास्ति कदाचन।।
ये है इस स्तोत्र का अर्थ- हनुमान, अंजनीसुत, वायुपुत्र, महाबली, रामेष्ट, फाल्गुन सखा, पिंगाक्ष, अमित विक्रम, उदधिक्रमण, सीता शोक विनाशन, लक्ष्मण प्राणदाता, दशग्रीव दर्पहा। हनुमान जी के इन 12 नामों का जप सुबह, दोपहर, संध्याकाल और यात्रा के दौरान जो भक्त करता है, उसे किसी भी तरह का भय नहीं रहता, उसे सफलता मिलती है।
शनिदेव के लिए करें ये शुभ काम
चैत्र पूर्णिमा और शनिवार के योग में शनिदेव का तेल से अभिषेक करना चाहिए। शनिदेव को तेल चढ़ाएं और ऊँ शं शनैश्चराय नम: मंत्र का जाप करना चाहिए। शनिदेव को नीले फूल और काले तिल चढ़ाएं। किसी गरीब व्यक्ति को तेल का दान करें।
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