वरुथिनी एकादशी 26 को, राजा मान्धाता ने प्राचीन काल में इस दिन भगवान विष्णु के वराह अवतार की उपासना की थी
धर्म प्रवाह डेस्क। स्कंद पुराण के एकादशी महात्म्य अध्याय में सालभर की सभी एकादशियों का महत्व वर्णित है। मान्यता है कि वरुथिनी एकादशी का फल अन्य सभी एकादशियों से बढ़कर है। एकादशी पर भगवान विष्णु के लिए व्रत-उपवास किया जाता है। इस दिन जो व्यक्ति व्रत-उपवास रखते हैं, उन्हें कठिन तपस्या के बराबर फल प्राप्त होता है और उनके पुण्य में बढ़ोतरी होती है। उनके घर-परिवार में सुख-समृद्धि बढ़ती है। इस दिन पूजा और व्रत करने वाले को भगवान का रक्षा कवच मिलता है और यही वरुथिनी का अभिप्राय है। इस सप्ताह 26 अप्रैल मंगलवार को यह एकादशी है। जानिए इस व्रत का महत्व और कथा आदि के बारे में।
एकादशी व्रत का महत्व: इस एकादशी का नाम वरुथिनी है। यह सौभाग्य देने वाली, सब पापों को नष्ट कर रक्षा करने वाली है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा आराधना संपन्न होने के बाद अपनी यथाशक्ति के अनुसार व्रती दान पुण्य करें। मान्यता है कि इस दिन दान-पुण्य करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। व्यक्ति द्वारा किए गए सभी पापों का शीघ्र ही अंत होता है। पौराणिक मान्यता है कि राजा मान्धाता ने प्राचीन काल में इस दिन भगवान विष्णु के वराह अवतार की उपासना की थी। इसी वरुथिनी एकादशी के प्रभाव से वह मोक्ष को प्राप्त कर स्वर्ग को गया था।
कथा : प्राचीन काल में मान्धाता नाम का एक तपस्वी तथा दानवीर राजा था, जो नर्मदा नदी के तट पर राज्य करता था। एक दिन वह जंगल में एक स्थान पर तपस्या करने गया, तभी वहां एक भालू आकर राजा मान्धाता के पैर को चबाने लगा, लेकिन राजा तपस्या में लीन रहा। भालू राजा को घसीटने लगा और जंगल के अंदर ले गया। राजा ने भयभीत होकर मन ही मन भगवान विष्णु से रक्षा की प्रार्थना की। भक्त की सच्ची पुकार सुनकर भगवान विष्णु वहां प्रकट हुए और भालू से राजा के प्राण बचाए।
भालू ने राजा का पैर खा लिया था, तब भगवान विष्णु ने राजा से कहा कि इसका एक उपाय है। तुम मथुरा में वरुथिनी एकादशी का व्रत करो, वहां पर मेरी वराह अवतार मूर्ति की आराधना करो। उस व्रत के प्रभाव से तुम ठीक हो जाओगे। तुम्हारे पुराने जन्म के पाप कर्म के कारण ही तुमने अपना पैर गंवाया है।
राजा ने वरुथिनी एकादशी का व्रत मथुरा में किया। वहां पर उसने वराह अवतार मूर्ति की विधि विधान से पूजा की। फलाहार करते हुए व्रत किया। व्रत के प्रभाव से राजा फिर से सुंदर शरीर वाला हो गया बाद में मृत्यु के बाद स्वर्ग लोक गया। इस प्रकार से जो भी वरुथिनी एकादशी व्रत रखता है, उसके पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे मोक्ष मिलता है।
इस व्रत की पूजा विधि इस प्रकार हैः एकादशी की सुबह स्नान आदि करने के बाद शुद्ध होकर संयम पूर्वक उपवास करना चाहिए। रात्रि जागरण करते हुए भगवान मधुसूदन यानी श्रीकृष्ण की पूजा भी करनी चाहिए।
इस दिन भगवान विष्णु की पूजा पूरी विधि के साथ करते हुए विष्णु सहस्रनाम का जाप करें और उनकी कथा सुननी चाहिए। व्रत के एक दिन पहले यानी दशमी तिथि को व्रती (व्रत करने वाला) को एक बार हविष्यान्न (यज्ञ में अर्पित अन्न) का भोजन करना फलदायी होता है। व्रत के अगले दिन यानी द्वादशी को ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए। उसके बाद स्वयं भोजन करना चाहिए।
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