जयपुर। वैशाख महीने की अमावस्या 30 अप्रैल को है। इसे सतुवाई अमावस्या भी कहते हैं। इस दिन सत्तू दान करने के साथ सत्तू खाने का भी बहुत महत्व है। सत्तू दान, गंगा स्नान, ब्राह्मणों व कन्याओं को भोजन कराने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। पितरों की तृप्ति के लिए इस दिन श्राद्ध, तर्पण आदि जरूर करना चाहिए। इस दिन सत्तू, छाता, वस्त्र, अन्न, जल पूरित घट का दान करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। भगवान विष्णु की आराधना करना चाहिए। भगवान सूर्य नारायण को अर्घ्य देना चाहिए। अमावस्या के दिन पितरों के निमित्त तर्पण कर ब्राह्मण भोजन करवाना चाहिए। छत पर पक्षियों के लिए जल रखना चाहिए।
इन उपायों से मिलेगी सुख-समृद्धि, आरोग्यता
वैशाख अमावस्या की तिथि 29 अप्रैल को रात 12.33 बजे से शुरू होकर अगले दिन 30 अप्रैल को रात 11.04 बजे तक रहेगी। 30 को ब्रह्म मुहूर्त 3.30 से 8.49 बजे तक विशेष शुभ फलदायी मुहूर्त है। इस समय पर पवित्र नदियों गंगा, नर्मदा, शिप्रा आदि में स्नान करें। सूर्यदेव को पूर्व व दक्षिण दिशा में पितरों को जल अर्पित करें। यदि नदी पर न जा सकें तो अपने घर पर नहाने के पानी में पवित्र गंगा या नर्मदा का जल डालकर भी स्नान कर सकते हैं। इस दिन पितरों की शांति के लिए उपवास रखना चाहिए एवं पीपल के वृक्ष का पूजन करना चाहिए।
पितरों को अर्पित किए जाते हैं सत्तू के पिंड
ज्योतिषाचार्य पं अक्षय शास्त्री ने बताया प्रत्येक तिथि पर अलग-अलग देवताओं का प्रभाव रहता है। अमावस्या पूर्ण रूप से पितरों, पूर्वजों की शांति, मुक्ति के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस बार यह शनिवार को होने से शनैश्चरी अमावस्या भी है। इस दिन पितरों को चावल से बने सत्तू के पिंड भी अर्पित किए जाते हैं, इसीलिए इसे सतुवाई अमावस्या भी कहते हैं।
सत्तू एक प्रोटीन डाइट है, इसे खाने से एनर्जी मिलती है
वैध् सुरेंद्र शर्मा का कहना है सत्तू एक प्रोटीन डाइट है। इसे खाने से एनर्जी मिलती है। गर्मी के मौसम में ऊष्णता बढ़ती है, शरीर का पित्त बढ़ता है। सत्तू पित्त का शमन करता है। सत्तू खाने से शरीर का तापमान कम होता है और ठंडक महसूस होती है। यह जलीय तत्वों की हानि को रोकता है।
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