ये क्या.... जब रावन का अहंकार टूटा तो, भोलेनाथ हो गए प्रसन्न

धर्म प्रवाह डेस्क। 

पौराणिक ग्रंथों में उल्लेखित है कि लंकापति रावण शिव जी के परम भक्तों में से एक था। रावण ने भगवान शिव की तपस्या कर उन्हें प्रसन्न कर शक्ति के वरदान पा लिए थे। फलस्वरूप रावण ने भगवान शिव की कृपा से पाए वरदानों का अनुचित प्रयोग करके तीनों लोकों को अपने वश में कर लिया। यहां तक कि उसने देवताओं और ऋषियों को परास्त कर उन सब पर अपनी प्रभुता स्थापित कर ली। इस बात का उसे अहंकार हो गया था और एक बार वह शिव जी के कैलाश पर्वत पर पहुंच गया। जब वहां अहंकारवश रावण ने भगवान शिव के कैलाश पर्वत को उठाने का प्रयत्न किया तो भगवान शिव ने अपने अंगूठे से पर्वत को दबाकर स्थिर कर दिया, जिससे रावण का हाथ पर्वत के नीचे दब गया। तब पीड़ा में रावण ने भगवान शिव की स्तुति की। रावण द्वारा गाई गई, यही स्तुति शिव तांडव स्त्रोत के नाम से जानी गई। शिव तांडव स्त्रोत का पाठ अन्य किसी भी पाठ की तुलना में भगवान शिव को अधिक प्रिय है। मान्यता है कि यह पाठ करने से भगवान शिव बहुत ही जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं। यह पाठ बहुत ऊर्जावान और शक्तिशाली माना गया है। परंतु इस पाठ को करते समय किसी के प्रति अपने मन में दुर्भावना न रखें। मान्यता है कि जब किसी समस्या के सारे प्रयास विफल हो जाएं उस स्थिति में शिव तांडव स्त्रोत करना चाहिए साधक को शिव कृपा जरूर मिलती है।

सप्ताह के व्रत-त्योहार

26 अप्रैल : मंगलवार : वरुथिनी एकादशी
28 अप्रैल : गुरुवार : प्रदोष व्रत (कृष्ण)
29 अप्रैल : शुक्रवार : मासिक शिवरात्रि
30 अप्रैल : शनिवार : वैशाख अमावस्या

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