जयपुर। अक्षय तृतीया तिथि एक वर्ष में आने वाले 4 अबूझ मुहूर्तों में से एक मानी जाती है। इस दिन ही भगवान परशुराम की जयंती भी मनाई जाती है। इस साल अक्षय तृतीया का पर्व मंगलवार को मनाई जाएगी। साथ ही इस दिन 3 शुभ योग बन रहे हैं, जिससे इसका महत्व और भी बढ़ गया है। हिंदू धर्म में पर्व का इतना महत्व बताया गया है।
अक्षय तृतीया का शाब्दिक अर्थ: "न क्षयः इति अक्षयः' यानी जिसका क्षय नहीं होता, वह अक्षय है, इसका मतलब है कि वैशाख एवं वसंत ऋतु के शुक्ल पक्ष में आने वाली तृतीया तिथि से है, जो 'अक्षय तृतीया' के नाम से प्रसिद्ध है। ज्योतिष के जानकारों का भी कहना है कि तिथियों का घटना बढ़ना, क्षय होना क्रमशः चंद्र मास एवं सौर मास की गणना के अनुसार तय होता है। परंतु अक्षय तृतीया एक ऐसी तिथि है, जो सर्वदा अक्षय रहती है।
भगवान विष्णु को प्रिय है: नारद के द्वारा पूछे जाने पर स्वयं भगवान विष्णु ने यह संकेत किया था कि अक्षय तृतीया एक ऐसी तिथि है, जो उन्हें सर्वप्रिय है। भगवान विष्णु ने कहा कि इस तिथि को किए जाने वाले सभी कार्य अक्षय होते हैं। ज्योतिष शास्त्र भी संकेत करता है कि यह तिथि ग्रह, लग्न, चंद्रावल, नक्षत्र, राशिफल आदि का समावेश होने के कारण शुभ कार्य के लिए ग्राहय और अग्राहय होती है।
हिंदू पंचाग में चार तिथियां होती है दोष रहित
हिंदू पंचांग के मुताबिक संपूर्ण वर्ष में ऐसी तिथियां होती हैं, जो दोष रहित हैं। इनमें चैत्र माह की रामनवमी, वैशाख माह की अक्षय तृतीया, आश्विन माह का दशहरा और फाल्गुन मास का फलरिया दूज। इन चारों तिथियों के सभी मुहूर्त शुभ हैं। अगर किसी तिथि को कोई कार्य सिद्ध नहीं हो रहा है, तो वह कार्य इन तिथियों को करने से सिद्ध एवं अक्षय होता है।
अक्षय तृतीया पर मनाए जाते हैं ये पर्व: अक्षय तृतीया तिथि के दिन देश के अलग अलग हिस्सों में अलग त्योहार भी मनाए जाते हैं। इस तिथि को सतुआ तीज, परशुराम जयंती तथा देव-पितृ तारिणी पर्व भी मनाया जाता है। राजस्थान में अक्षय तृतीया तिथि के दिन ही युवा लड़के और लड़कियों की शादी का मुहूर्त निकाला जाता है।
अक्षय तृतीया पर दान का महत्व: अक्षय तृतीया तिथि पर दान का विशेष महत्व बताया गया है। इस तिथि पर दिए गए दान को देवता और पितर दोनों प्रसन्न होकर स्वीकार करते हैं। पृथक-पृथक भागों में इस तिथि पर पंखा, तिल, अक्षत, अन्न, पुष्प, फल, वस्त्र, दक्षिणा आदि दान करने का विधान है। चार धामों में से एक बदरीनाथ धाम के पट भी इसी पावन विधि को खोले जाते हैं और अक्षय ज्योति (अखंड दीप) के दर्शन कर लोग अपने को धन्य मानते हैं। पूर्व दिशा में भगवान जगन्नाथ जी विराजमान हैं। वह स्वयं इस तिथि को प्रसन्न होकर अपने भक्तों को आशीर्वाद देते हैं। ऐसी धारणा है कि पहले वे जगन्नाथ धाम की यात्रा करके उत्तर की ओर प्रस्थान करते हैं। अक्षय तृतीया से लेकर रथयात्रा (आषाढ़ शुक्ल द्वितीया) तक का समय बड़ा शुभ माना जाता है।
इन राज्यों में अक्षय तृतीया का विशेष महत्व: महाराष्ट्र, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, केरल, मैसूर, कर्नाटक आदि दक्षिणवर्ती प्रदेशों में भी अक्षय तृतीया का बड़ा महत्व है। सभी देवी-देवताओं की पूजा बड़ी देवी भक्ति के साथ की जाती है। कीर्तन के साथ मांगलिक कार्य किए जाते हैं। तिरुपति बालाजी में सहस्रार्चन, सहस्राभिषेक, सहस्रष्ट विधि बड़ी प्रसिद्ध हैं। महाराष्ट्र में भगवान पंढरीनाथ की पैदल यात्रा प्रसिद्ध है। पंजाब के लोग भगवान परशुराम को अपना आराध्य मानते हैं।
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