जानकी नवमी 10 मई को:इसी तिथि पर प्रकट हुई थीं मां सीता, इस दिन व्रत और पूजा से मिलता है 16 तरह के दान का पुण्य

धर्म प्रवाह डेस्क। वैशाख महीने के शुक्लपक्ष के नौवें दिन यानी नवमी तिथि को सीता जयंती मनाई जाती है। इस पर्व को जानकी नवमी भी कहा जाता है। इस दिन माता सीता और श्रीराम की पूजा की जाती है। ये पर्व 10 मई को मनेगा। धर्म ग्रंथों के अनुसार इसी दिन सीता का प्राकट्य हुआ था। श्रीराम और सीता जी का जन्म एक ही नक्षत्र में हुआ। ज्योतिषाचार्य पं अक्षय शास्त्री के अनुसार ग्रंथों में वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी को पुष्य नक्षत्र में महाराजा जनक को पृथ्वी से संतान प्राप्त हुई थी। ग्रंथों में इस दिन का महत्व बताते हुए कहा गया है कि इस दिन माता सीता और श्रीराम की पूजा के साथ ही व्रत भी रखना चाहिए। इससे पृथ्वी दान सहित, सोलह तरह के महत्वपूर्ण दान का फल भी मिलता है।

नवमी का महत्व
इस दिन सुहागिन महिलाओं द्वारा व्रत रखने से घर में सुख-शांति बनी रहती है। महिलाएं इस दिन पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं। मान्यता है कि सीता माता लक्ष्मी जी का अवतार हैं। इस दिन व्रत रखने और पूजा से कई तीर्थ यात्राओं और दान-पुण्य के बराबर फल मिलने की मान्यता भी है।

जानकी जन्म कथा
वाल्मीकि रामायण के अनुसार राज जनक की कोई संतान नहीं थी। इसलिए उन्होंने यज्ञ करने का संकल्प लिया। जिसके लिए उन्हें जमीन तैयार करनी थी। वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को पुष्य नक्षत्र में जब राजा जनक हल से जमीन को जोत रहे थे, उसी समय पृथ्वी में उनके हल का एक हिस्सा फंस गया। उस जगह खुदाई करने पर मिट्‌टी के बर्तन में उन्हें कन्या मिली। जोती हुई भूमि और हल की नोक को सीत कहा जाता है, इसलिए उसका नाम सीता रखा गया।

सीता नवमी की पूजा
1. सीता नवमी पर व्रत व्रत करने वाले को सुबह जल्दी उठकर नहाना चाहिए।
2. इसके बाद माता जानकी को प्रसन्न करने के लिए व्रत और पूजा का संकल्प लेना चाहिए।
3. फिर एक चौकी पर माता सीता और श्रीराम की मूर्ति या तस्वीर रखें।
4. राजा जनक और माता सुनयना की पूजा के साथ पृथ्वी की भी पूजा करनी चाहिए।
5. इसके बाद श्रद्धा अनुसार दान का संकल्प लेना चाहिए।
6. कई जगहों पर मिट्‌टी के बर्तन में धान, जल या अन्न भरकर दान दिया जाता है।

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