धर्म प्रवाह डेस्क। ज्येष्ठ महीने का संकष्टी चतुर्थी व्रत 19 मई को रहेगा। इस तिथि पर भगवान गणेश के एकदंत रूप की पूजा करने की परंपरा है। इस दिन गुरुवार को उत्तराषाढ़ नक्षत्र होने से प्रजापति योग बन रहा है। इस योग में भगवान गणेश की पूजा का शुभ फल और बढ़ जाएगा। भविष्य पुराण के अनुसार संकष्टी चतुर्थी की पूजा और व्रत करने से हर तरह के कष्ट दूर हो जाते हैं। हर तरह के संकट से छुटकारा पाने के लिए संकष्टी चतुर्थी पर भगवान गणेश और चतुर्थी देवी की पूजा की जाती है। इनके साथ ही रात का चंद्रमा की पूजा और दर्शन करने के बाद व्रत खोला जाता है।
प्रथम पूज्य गणेश
धर्म ग्रंथों के अनुसार किसी भी शुभ काम करने से पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है। इसलिए भगवान गणेश को सभी देवी-देवताओं में प्रथम पूजनीय माना गया है। इन्हें बुद्धि, बल और विवेक के देवता का दर्जा प्राप्त है। इनकी पूजा और व्रत से कामकाज में आ रही रुकावटें दूर हो जाती है। जिससे काम पूरे होते हैं। भगवान गणेश के प्रसन्न होने से हर तरह के संकट भी दूर हो जाते हैं।
संकष्टी चतुर्थी और गणेश पूजा
ज्योतिषाचार्य पं राजकुमार चतुर्वेदी ने बताया कि संकष्टी चतुर्थी का मतलब होता है संकट को हरने वाली चतुर्थी। संकष्टी संस्कृत भाषा से लिया गया शब्द है, जिसका अर्थ है कठिन समय से मुक्ति पाना। इस दिन भक्त अपने दुखों से छुटकारा पाने के लिए गणपति जी की आराधना करते हैं। पुराणों के अनुसार चतुर्थी के दिन गौरी पुत्र गणेश की पूजा करना फलदायी होता है। इस दिन उपवास करने का और भी महत्व होता है।
भगवान गणेश को समर्पित इस व्रत में श्रद्धालु अपने जीवन की कठिनाइयों और बुरे समय से मुक्ति पाने के लिए उनकी पूजा-अर्चना और उपवास करते हैं। कई जगहों पर इसे संकट हारा कहते हैं तो कहीं इसे संकट चौथ भी। इस दिन भगवान गणेश का सच्चे मन से ध्यान करने से व्यक्ति की सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं और लाभ प्राप्ति होती है।
इस तरह करे पूजा की विधि
इस दिन सुबह सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें और साफ कपड़े पहनें।
गुरुवार होने से इस दिन पीले रंग के कपड़े पहनना भी शुभ माना जाता है।
ग्रंथों में बताया है कि व्रत और पर्व पर उस दिन के हिसाब से कपड़े पहनने से व्रत सफल होता है।
स्नान के बाद गणपति जी की पूजा की शुरुआत करें।
गणपति जी की मूर्ति को फूलों से अच्छी तरह से सजा लें।
पूजा में तिल, गुड़, लड्डू, फूल, तांबे के कलश में पानी, धूप, चंदन, प्रसाद के तौर पर केला या नारियल रखें।
संकष्टी को भगवान गणपति को तिल के लड्डू और मोदक का भोग लगाएं।
शाम को चंद्रमा निकलने से पहले गणपति जी की पूजा करें और संकष्टी व्रत कथा का पाठ करें।
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