बगलामुखी जयंती सोमवार को:दस महाविद्याओं में आठवीं महाविद्या हैं बगलामुखी, पीले कपड़े पहनकर करनी चाहिए देवी की पूजा
जयपुर। 9 मई को वैशाख मास शुक्ल अष्टमी तिथि पर बगलामुखी जयंती है। दस महाविद्याओं में बगलामुखी आठवी महाविद्या हैं। शास्त्रों में इन्हें वल्गा कहा गया है, बाद में अपभ्रंश होकर वल्गा से बगला हो गया। ज्योतिषाचार्य पं. अक्षय शास्त्री के मुताबिक धन लाभ, मुकदमे में जीत, शत्रुओं पर जीत, राजनीति में जीत आदि मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए देवी बगलामुखी की पूजा खासतौर पर की जाती है।
बगलामुखी देवी की पूजा में भक्त को पीले कपड़े पहनना चाहिए। साथ ही पूजा में बैठने के पीले आसन का उपयोग करना चाहिए। बगलामुखी देवी की जयंती पर विशेष पूजा करना चाहते हैं तो बहुत सावधानी रखनी चाहिए। किसी विशेषज्ञ ब्राह्मण की मदद से ही देवी बगलामुखी से संबंधित उपासना करनी चाहिए। अगर पूजा में कोई गलती हो जाती है तो पूजा का विपरीत असर भी हो सकता है। अत: बगलामुखी की पूजा में बिल्कुल भी लापरवाही नहीं करनी चाहिए।
बगलामुखी से जुड़ी कुछ खास बातें
नाम- बगलामुखी और पीताम्बरा
कुल- यह श्री कुल की अंग विद्या हैं। इनके शिव त्र्यंबकशिव हैं।
भैरव - आनंद भैरव हैं और हरिद्रा गणपति देवी के मुख्य गणेश जी है।
ये है दस महाविद्या की संक्षिप्त कथा
देवी भागवत पुराण के मुताबिक देवी सती से दस महाविद्याओं की उत्पप्ति हुई है। देवी सती के पिता दक्ष प्रजापति ने एक यज्ञ का आयोजन किया था। दक्ष ने यज्ञ में शिव जी और सती को नहीं बुलाया था, लेकिन सती बिना बुलाए ही पिता के आयोजन में जाने की जिद कर रही थीं, लेकिन शिव जी बार-बार मना कर रहे थे। इससे सती क्रोधित हो गईं और सती के क्रोध से दसों दिशाओं से देवी के दस रूप प्रकट हुए, जिन्हें दस महाविद्या कहा जाता है। ये दस महाविद्याएं हैं काली, तारा, छिन्नमस्ता, षोडशी, भुवनेश्वरी, त्रिपुर भैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमला।
शिव जी के मना करने के बाद भी देवी सती पिता दक्ष के आयोजन में पहुंची और वहां शिव जी का अपमान होते देखकर उन्होंने यज्ञ कुंड में कूद अपनी देह का अंत कर दिया था। बाद देवी ने हिमालय राज के यहां पार्वती के रूप में जन्म लिया था।
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