पितृपक्ष की एकादशी 21 सितंबर को:इस दिन विष्णु पूजा और श्राद्ध करने से मृतात्माओं को मोक्ष मिलता है, पितर भी संतुष्ट होते हैं

धर्म प्रवाह डेस्क, जयपुर। 13 सितंबर को अश्विन महीने के कृष्ण पक्ष की ग्यारहवीं तिथि है। इसे इंदिरा एकादशी कहते हैं। श्राद्ध में आने वाली ये एकादशी बहुत खास होती है। इस तिथि पर भगवान विष्णु की पूजा से पितरों का संतुष्टि मिलती है। इंदिरा एकादशी का व्रत करने से पितरों को पुण्य मिलता है। वहीं, इस दिन तिथि पर भगवान शालिग्राम की पूजा और व्रत रखने का विधान है। ज्योतिषाचार्य पं अक्षय शास्त्री का कहना है कि एकादशी पर आंवला, तुलसी, अशोक, चंदन या पीपल का पेड़ लगाने से भगवान विष्णु के साथ ही पितर भी प्रसन्न होते हैं। वहीं, उपनिषदों में भी कहा गया है कि भगवान विष्णु की पूजा से पितृ संतुष्ट होते हैं। कोई पूर्वज जाने-अनजाने में किए गए अपने किसी पाप की वजह से यमराज के पास दंड भोग रहे हों तो विधि-विधान से इंदिरा एकादशी का व्रत करने उन्‍हें मुक्ति मिल सकती है। इस दिन तर्पण, पिंडदान और ब्राह्मण भोजन करवाने से मृतात्माओं को मोक्ष मिलता है। इसलिए इंदिरा एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा, व्रत और दान का संकल्प लेना चाहिए। साथ ही ये प्रार्थना करनी चाहिए कि इन सबका पुण्य पितरों को मिले। इंदिरा एकादशी व्रत का महत्व इंदिरा एकादशी की खास बात यह है कि यह पितृपक्ष में आती है। इसलिए इसका महत्व बढ़ जाता है। ग्रंथों के अनुसार इस एकादशी पर विधिपूर्वक व्रत कर इसके पुण्य को पूर्वजों के नाम पर दान कर दिया जाए तो उन्हें मोक्ष मिल जाता है और व्रत करने वाले को बैकुण्ठ प्राप्ति होती है। पद्म पुराण के अनुसार इस एकादशी का व्रत करने वाले व्यक्ति के सात पीढ़ियों तक के पितृ तर जाते हैं। इस एकादशी का व्रत करने वाला भी स्वयं मोक्ष प्राप्त करता है। इंदिरा एकादशी का व्रत करने और भगवान विष्णु की विधिवत पूजा करने से बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है। पुराणों में बताया गया है कि जितना पुण्य कन्यादान, हजारों वर्षों की तपस्या और उससे अधिक पुण्य एकमात्र इंदिरा एकादशी व्रत करने से मिल जाता है।

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