इंदिरा एकादशी का महत्व और पूजा विधि:श्राद्ध के दिनों में एकादशी पर दान और पूजा से तृप्त हो जाते हैं सात पीढ़ियों के पितर
धर्म प्रवाह डेस्क, जयपुर। इंदिरा एकादशी 21 सितंबर, बुधवार को है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा और व्रत करने के साथ ही जरूरतमंद लोगों को दान दिया जाता है। इस तिथि का महत्व इसलिए है क्योंकि ये पितृ पक्ष के दौरान आती है। ग्रंथों में कहा गया है कि श्राद्ध के दिनों में विष्णु पूजा करने से भी पितर तृप्त हो जाते हैं। जानिए इस एकादशी का महत्व और पूजा विधि...
पद्म पुराण: तृप्त होते हैं सात पीढ़ियों के पितर
इंदिरा एकादशी की खास बात यह है कि यह पितृ पक्ष में आती है। इसलिए इसका महत्व बढ़ जाता है। ग्रंथों के अनुसार इस एकादशी पर विधिपूर्वक व्रत कर इसके पुण्य को पूर्वज के नाम पर दान कर दिया जाए तो उन्हें मोक्ष मिल जाता है और व्रत करने वाले को बैकुण्ठ प्राप्ति होती है।
पद्म पुराण के अनुसार इस एकादशी का व्रत करने वाले व्यक्ति के सात पीढ़ियों तक के पितृ तर जाते हैं। इस एकादशी का व्रत करने वाला भी स्वयं मोक्ष प्राप्त करता है। इंदिरा एकादशी का व्रत करने और भगवान विष्णु की विधिवत पूजा करने से बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है।
पुराणों में बताया गया है कि जितना पुण्य कन्यादान, हजारों वर्षों की तपस्या और उससे अधिक पुण्य एकमात्र इंदिरा एकादशी व्रत करने से मिल जाता है।
किन चीजों का दान करें
अश्विन महीने की एकादशी पर घी, दूध, दही और अन्न दान करने का विधान ग्रंथों में बताया गया है। इस तिथि पर जरुरतमंद लोगों को खाना खिलाया जाता है। ऐसा करने से पितर संतुष्ट होते हैं। इन चीजों का दान करने से सुख और समृद्धि बढ़ती है। धन लाभ होता है और सेहत अच्छी रहती है।
एकादशी व्रत और पूजा विधि
1. इस एकादशी के व्रत और पूजा की विधि अन्य एकादशियों की तरह ही है, लेकिन सिर्फ अंतर ये है कि इस एकादशी पर शालिग्राम की पूजा की जाती है।
2. इस दिन स्नान आदि से पवित्र होकर सुबह भगवान विष्णु के सामने व्रत और पूजा का संकल्प लेना चाहिए। अगर पितरों को इस व्रत का पुण्य देना चाहते हैं तो संकल्प में भी बोलें।
3. इसके बाद भगवान शालग्राम की पूजा करें। भगवान शालग्राम को पंचामृत से स्नान करवाएं। पूजा में अबीर, गुलाल, अक्षत, यज्ञोपवीत, फूल होने चाहिए। इसके साथ ही तुलसी पत्र जरूर चढ़ाएं। इसके बाद तुलसी पत्र के साथ भोग लगाएं।
4. एकादशी की कथा पढ़कर आरती करनी चाहिए। इसके बाद पंचामृत वितरण कर, ब्राह्मणों को भोजन कराकर दक्षिणा देनी चाहिए। इस दिन पूजा तथा प्रसाद में तुलसी की पत्तियों का (तुलसी दल) का प्रयोग अनिवार्य रूप से किया जाता है।
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