अश्विन महीने की एकादशी का महत्व:इस तिथि पर व्रत के साथ ही सूर्य और पीपल की पूजा करने से तृप्त हो जाते हैं पितर

धर्म प्रवाह डेस्क, जयपुर। पितरों को संतुष्ट करने के लिए अश्विन महीने के कृष्ण पक्ष को महत्वपूर्ण माना गया है। इस दौरान एकादशी पर सूर्य को अर्घ्य देने और पीपल की पूजा करने से पितर तृप्त हो जाते हैं। इस बात का जिक्र ग्रंथों में भी किया गया है। इसलिए अश्विन मास की एकादशी को भी पितृ पर्व कहा जाता है। वेदों और उपनिषद में इस बात का जिक्र है कि जब सूर्य कन्या राशि में हो तब पितरों के लिए श्राद्ध करना चाहिए। इस वक्त किए श्राद्ध से पितृ लंबे समय तक तृप्त हो जाते हैं। कन्या राशि में सूर्य होने से इस पक्ष को कन्यागत कहा गया है। धीरे-धीरे इसे ही कनागत कहा जाने लगा। ग्रंथों में ये भी बताया है कि इस दौरान सूर्य को अर्घ्य देने से पितृ खुश होते हैं। सूर्य पूजा: अश्विन महीने में सूर्य के कन्या राशि में रहते हुए दिया गया अर्घ्य पितरों को तृप्त करता है। सूर्य, भगवान विष्णु का ही अंश है। इसलिए इन्हें सूर्य नारायण कहा गया है। ये ही प्रत्यक्ष देवता हैं। इसलिए इंदिरा एकादशी पर उगते हुए सूरज को जल चढ़ाने के बाद पितरों की तृप्ति के लिए प्रार्थना करना चाहिए। ऐसा करने से पितर संतुष्ट होते हैं। पीपल पूजा: अश्विन महीने की एकादशी पर पीपल की पूजा का भी खास महत्व है। इस दिन सुबह जल्दी उठकर पानी में गंगाजल, कच्चा दूध और तिल मिलाकर पीपल को चढ़ाना चाहिए। ऐसा करने से पितृ तृप्त हो जाते हैं। साथ ही भगवान विष्णु की कृपा मिलती है। ऐसे करें पितरों के लिए विशेष पूजा एकादशी तिथि पर श्राद्ध और तर्पण करने का विधान ग्रंथों में बताया गया है। इसके लिए एक लोटे में जल भरें, जल में फूल और तिल मिलाएं। इसके बाद ये जल पितरों को अर्पित करें। जल अर्पित करने के लिए जल हथेली में लेकर अंगूठे की ओर से चढ़ाएं। कंडा जलाकर उस पर गुड़-घी डालकर धूप अर्पित करें। पितरों का ध्यान करें। पितृ पक्ष वायु रूप में आते हैं पितर माना जाता है कि पितृ पक्ष के दौरान पितर स्वर्गलोक, यमलोक, पितृलोक, देवलोक, चंद्रलोक व अन्य लोकों से सूक्ष्म वायु शरीर धारण कर धरती पर आते हैं। वे देखते हैं कि उनका श्राद्ध श्रद्धाभाव से किया जा रहा है या नहीं। अच्छे कर्म दिखने पर पितृ अपने वंशजों पर कृपा करते हैं। श्राद्ध में पितरों के नाम से तर्पण, पूजा, ब्रह्मभोज व दान करना पुण्यकारी होता है। इसलिए पितरों को प्रसन्न करने के लिए तर्पण किया जाता है और इन दिनों में दान और ब्रह्म भोज भी कराया जाता है।

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